Friday 18 January 2013

परदे के भीतर का सच उतना शुद्ध जितना परदे की भीतर बिन श्रृंगार के नारी का रूप,बाहर आ कर सत्य लुभाने वाला, मिर्च नमक डाल कर बनी चाट की तरह चटपटा और खूबसूरती को निखारने वाले विभिन्न श्रृंगार प्रसाधनों और लेपों  से पुती नारी की तरह अपने असली स्वरुप को खो देता है| दिखाने के लिए सत्य पर एक बारीक सी आँखों को छलने वाली सुन्दरता की पर्त पर्त लपेट ली जाती है ताकि दुनियां के टी वी पर टी. आर.पी. बढती जाए| लेकिन  परदे के पीछे मन का संताप आँखों से बाहर आँसू बन कर छलक आता है और हर्ष आनंद पर मुस्कुरा या हँस लेता है, आप खुद पर्दों के पीछे मस्त आराम फरमा सकते है और खुद को अभिव्यक्त कर सकते हैं , जबकि रंगमंच पर आते ही किरदार को अपनी भूमिका निभाते हुए तदनुरूप अभिनय करना पड़ता है आँसुओं  को पीना
पड़ता है| हँसी को दबाना पड़ता है| सामाजिकता को निभाना पड़ता है| मैं यहाँ परदे के पीछे के सत्य को उजागर करने की भरसक कोशिश
करने के लिए हूँ जब तक रंगमंच का पर्दा नहीं उठता |